:
visitors

Total: 663363

Today: 81

Breaking News
GO’S SLOTS GIVEN TO OTHER AIRLINES,     EX CABINET SECRETARY IS THE ICICI CHAIRMAN,     TURBULENCE SOMETIMES WITHOUT WARNING,     ARMY TO DEVELOP HYDROGEN FUEL CELL TECH FOR E- E-MOBILITY,     ONE MONTH EXTENSION FOR ARMY CHIEF,     YUVAGYAN HASTAKSHAR LATEST ISSUE 1-15 JUNE 2024,     A.J. Smith, winningest GM in Chargers history, dies,     पर्यायवाची,     Synonyms,     ANTONYM,     क्या ईश्वर का कोई आकार है?,     पीढ़ी दर पीढ़ी उपयोग में आने वाले कुछ घरेलू उपाय,     10वीं के बाद कौन सी स्ट्रीम चुनें?कौन सा विषय चुनें? 10वीं के बाद करियर का क्या विकल्प तलाशें?,     मई 2024 का मासिक राशिफल,     YUVAHASTAKSHAR LATEST ISSUE 1-15 MAY,     खो-खो खेल का इतिहास - संक्षिप्त परिचय,     उज्जैन यात्रा,     कैरम बोर्ड खेलने के नियम,     Review of film Yodha,     एशियाई खेल- दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बहु-खेल प्रतिस्पर्धा का संक्षिप्त इतिहास,     आग के बिना धुआँ: ई-सिगरेट जानलेवा है,     मन क्या है?,     नवरात्रि की महिमा,     प्रणाम या नमस्ते - क्यूँ, कब और कैसे करे ?,     गर्मी का मौसम,     LATEST ISSUE 16-30 APRIL 2024,     Yuva Hastakshar EDITION 15/January/2024,     Yuvahastakshar latest issue 1-15 January 2024,     YUVAHASTAKSHAR EDITION 16-30 DECEMBER,    

नवरात्रि की महिमा

top-news

चैत्र नवरात्रि हिन्दू धर्म के चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को शुरू होता हैं।  चैत्र नवरात्रि के दौरान लोग नौ दिनों तक माँ दुर्गा की नौ रूपों की पूजा करते हैं और उनकी आराधना करते हैं। इसके दौरान भक्त ध्यान, भक्ति और त्याग के माध्यम से अपने आत्मा को शुद्ध करते हैं और देवी की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चैत्र नवरात्रि का अंतिम दिन, जो राम नवमी के रूप में भी जाना जाता है, बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। चैत्र नवरात्रि का महत्व है कि यह वसंत ऋतु के आरंभ के साथ आता है और उत्तेजना, उत्साह और नई ऊर्जा का संचार करता है। इसके अलावा, यह धर्म, संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत की महत्ता को बताता है।
शक्ति और शुद्धता का प्रतीक, देवी दुर्गा को समर्पित यह धार्मिक उत्सव मनाया जाता है।इस धार्मिक अनुष्ठान में केवल फलाहार रहकर या बिना किसी प्रकार के भोज्य पदार्थ के माता की पूजा अर्चना की जाती है। भक्तगण चावल, गेहूं और दालें या अनाज खाने से परहेज़ करते हैं और इसके लिए ही नवरात्रि व्रत प्रसिद्ध है। वैसे तो भारत पर्वों का देश है और प्रत्येक ऋतुओं में अलग अलग त्योहार पड़ते हैं। नवरात्रि के दौरान चारों तरफ भक्तिमय माहौल बन जाता है और हर ओर माँ के जयकारे सुनायी देते हैं। नवरात्रि मां दुर्गा (शक्ति) के आराधना का समय है इसलिए इसे बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। माता के भक्त नौ दिनों पूरे भक्तिभाव से नवरात्रि मनाते हैं और सुख समृद्धि, स्वास्थ की कामना करते हैं। नवरात्रि को लेकर ग्रंथों में तथा अन्य किवदंतियाँ प्रचलित हैं परन्तु कई माता के भक्तों को नवरात्रि मनाने के अभिप्राय से अनभिज्ञ हैं। सनातन धर्म में जीतने भी तीज त्योहार मनाये जाने की प्रथा आचार्यों, ऋषि मुनियों ने बनायी उन सबके पीछे वैज्ञानिक कारण निहित हैं और नवरात्रि भी उस से अनछुई नहीं है। इस महापर्व के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है।

नवरात्रि क्या है

नवरात्रि जैसा की नाम है ‘नव’ और ‘रात्रि’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन दिनों के दौरान भक्तों गण माँ दुर्गा की नौ रूपों की पूजा करते हैं।जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। ये नौ रूप माँ दुर्गा के निमित्त कुछ खास गुणों को प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे कि शक्ति, शांति, संजीवनी, धैर्य, स्नेह, तपस्या, विवेक, ज्ञान, और श्रद्धा।भारतीय संस्कृति का यह बहुत ही महत्व पूर्ण त्योहार है। इस समय, आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा की जाती है और देश भर में पूजा पांडालों में दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पश्चिम बंगाल सहित देश भर में नवरात्रि को दुर्गा पूजा भी कहा जाता है। नवरात्रि का महत्व अच्छी स्वास्थ्य और शारीरिक कुशलता के लिये भी है। भक्त ध्यान करते है जिस से भक्तों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।

नवरात्रि कब मनायी जाती है

ग्रंथों और वैष्णव पुराण के अनुसार वर्ष में चार बार मनायी जाती है। लेकिन इसमें से शरद नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि ही मुख्य होती है। शरद नवरात्रि आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक और चैत्र नवरात्रि विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है।ग्रिगेरियन कैलेंडर के अनुसार, शरद नवरात्रि हर साल सितंबर या अक्टूबर में होती है। जबकि चैत्र नवरात्र अप्रैल या मार्च में मनाया जाती है। बाक़ी दो नवरात्रि अधिकतर साधु संन्यासी मनाते हैं।

नवरात्रि क्यों मनायी जाती है

नवरात्रि को मनाने के पीछे कई कहानियां और किवदंतियाँ प्रचलित है। पुराणों के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था।भगवान राम ने रावण से युद्ध करके उसे मार डाला था। राम और रावण का अंतिम संघर्ष दशमी के दिन ही हुआ था और रावण मारा गया था। नवरात्रि में नौ दिनों तक रामायण पढ़ा जाता है और रामलीला दिखाई जाती है। दशहरा दसवें दिन रावण का पुतला जलाकर मनाया जाता है।

भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में नवरात्रि उत्सव का मुख्य कारण यह माना जाता है
कि शेर पर सवार होकर माता ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था और देवताओं की रक्षा की थी। इसी के उपलक्ष्य में नवरात्रि मनायी जाती है और आदि शक्ति दुर्गा की नौ दिनों तक आराधना की जाती है।

नवरात्रि के पीछे वैज्ञानिक कारण

जब दो ऋतुओं का समागम होता है तो इसे ऋतु संधिकाल कहा जाता है और स्वास्थ्य के लिए इसका बहुत महत्व है। पुराणों के अनुसार संधिकाल में वात, कफ और पित्त घट जाता है और व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण बीमारियां शरीर में घर करने लगती हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने के लिए नौ दिनों की नवरात्रि का व्रत रखकर माता की भक्ति करने से इच्छा शक्ति प्रबल हो जाती है और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ने के कारण इसे बहुत फलदायी माना जाता है। व्रत के कारण शरीर का शुद्धिकरण भी हो जाता है। इसके अलावा एक और वैज्ञानिक तर्क यह दिया जाता है कि नवरात्रि की नौ रातें बहुत शुभ होती हैं और इस दौरान प्रकृति के सभी अवरोध खत्म हो जाते हैं। यही कारण है कि संधिकाल में नवरात्रि मनायी जाती है। हिन्दू धर्म का बहुत पवित्र और धार्मिक पर्व होने के कारण नवरात्रि में लोग पूरे श्रद्धाभाव से एकजुट होकर इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। नवरात्रि हमारी संस्कृति का भी परिचायक है और इसके वैज्ञानिक कारण भी काफी महत्वपूर्ण है। दोनों नवरात्रि इसी ऋतु के बीच पड़ती है।

नवरात्रि के दौरान घर-घर में धूप, दीप, और फूलों की बेलें सजाते हैं। नवरात्रि का आयोजन विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से किया जाता है। उत्तर भारत में इसे बड़े धूमधाम और रंग-बिरंगी उत्सव के रूप में में मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में इसे ध्यान, और पूजन के रूप में अधिक शांतिपूर्ण रूप में मनाया जाता है।

इस पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
प्रथम दिन 
शैलपुत्री: प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा का प्रथम रूप है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। वह एक कमल की योनि में विराजमान हैं और एक त्रिशूल और कुंडली धारण करती हुई परिलक्षित होती है।।

द्वितीय दिन 
ब्रह्मचारिणी: इस दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।इनका रूप बहुत ही निराला है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमंडल है। कहा जाता है की शक्ति देवी भगवती ने ब्रह्म को प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या की थी इसी लिए इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इनकी आराधना करने से तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है।

तृतीय दिन 
चंद्रघंटा: तृतीय दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इनके मस्तिष्क में घंटे के आकर का अर्धचन्द्र है इसीलिये इन्हें चंद्रघंटा देवी कहते है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है और इनके दस हाथ हैं। इनके दासों हाथों में खड्ग, बाण आदि अस्त्र सुशोभित हैं। इनका वाहन सिंह है और ये हमेशा युद्ध के लिए तैयार दिखती हैं।

चतुर्थ दिन
कूष्मांडा: इस दिन माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। माता कूष्मांडा आठ भुजाओं वाली दिव्य शक्ति धारण माँ परमेश्वरी का रूप हैं। माता की पूजा से बुद्धि विकास में सहायता मिलती है। माता को पीला रंग अति प्रिय हैं।

पंचम दिन 
स्कंदमाता: पंचमी दिन माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है। भगवान कार्तिकेय(स्कन्द) को माता ने प्रशिक्षित किया था इसी कारण स्कन्द माता कहते हैं। माता कमल के आसान पर विराजमान है इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहते हैं। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की देवी कहते हैं।

षष्ठी दिन 
कात्यायनी: इस दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो कात्यायन ऋषि की पुत्री हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्त होती है। इनकी चार भुजाएँ हैं। दायीं तरफ़ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में रहता है। नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है।माता को शहद प्रिय है। माता को केले का भोग लगाया जाता है।

सप्तम दिन 
कालरात्रि: सप्तमी दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है, जो माँ दुर्गा का सबसे कठिन रूप माना जाता है।इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में चमक ई वाली माला है और इनके तीन नेत्र हैं। माँ की नासिका से अग्नि की ज्वालाएँ निकलती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ये ऊपर उठे हुए दाहिनी हाथ की वर मुद्रा से सभी को वार प्रदान करती हैं।दाहिनी तरफ़ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बाई तरफ़ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले में खड्ग है। ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इसी लिये इनका नाम शुभंकारी भी है। माँ काली दुष्टों का विनाश करने वाली हैं।

अष्टम दिन
महागौरी: अष्टमी के दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है। जो दुखों और दुर्गुणों का नाश करती हैं। उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य है। माता का रंग अत्यंत गोरा है। कठिन तपस्या से माँ ने ग़ौरवर्ण प्राप्त किया था इसी लिए इन्हें महागौरी कहते हैं। इनके वस्त्र और आभूषण भी सफ़ेद रंग के हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन बैल है।देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है।बायें ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। ये शांत स्वभाव की हैं।

नवम दिन 
सिद्धिदात्री: नवमी दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो सिद्धियों की दात्री मानी जाती हैं। माँ के पास आठ सिद्धियाँ हैं। माँ सिद्धिदात्री  महालक्ष्मी के समान कमल पर विराजमान हैं। माँ के चार हाथ हैं।

इन दिनों भक्तों को नौ रूपों में माँ दुर्गा की पूजा करने का मौका मिलता है और उन्हें अपने जीवन में शक्ति, सामर्थ्य और आनंद का अनुभव होता है।चैत्र नवरात्र के नौ दिनों में, लोग ध्यान, ध्यान, भजन-कीर्तन, और दान करके मां दुर्गा को खुश करते हैं।

यह पर्व साधकों को सुख, समृद्धि, और आनंद की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।इस पर्व के दौरान, धार्मिक संगठनों और मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दौरान, नौकरी, व्यापार, और व्यक्तिगत जीवन में सफलता और  सुख की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की कृपा की कामना करते हैं।नौवीं को राम नवमी भी कहा जाता है, जो प्रभु राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान, लोग अपने आप को पुनर्जीवित करते हैं, अपने आप को धार्मिकता में समर्पित करते हैं, और मां दुर्गा की कृपा की कामना करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *